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Monday, May 9, 2011

खुद से खुद की बातें - डॉ नूतन गैरोला


9 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " said...

bahut sundar ,hardik badhai
sadar
laxmi narayan lahare

Kailash Sharma said...

सकारात्मक सोच को रेखांकित करती बहुत सुन्दर रचना..आभार

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत सुंदर कविता डॉ० नूतन जी बधाई और शुभकामनाएं |

दिगम्बर नासवा said...

जब रूह ईश्वर से मिल जाती है ...जिस्म मंदिर हो जाता है ...

मदन शर्मा said...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला जी नमस्ते ! व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ये जिन्न के चक्कर में कहाँ पड़ गईं आप ?
आपने बिलकुल सही लिखा है ! हमारे ह्रदय में जो भी शुभ विचार आते हैं वो उस इश्वर की ही देन है . यदि हम ऐसे विचारों को माने तो कभी भी कोई आपका अहित नहीं कर सकता ! लेकिन जानते हुवे भी हम अपने थोड़े से फायदे के लिए शैतानी विचारों का समर्थन करते हैं और परिणाम स्वरुप दुःख भी उठाते हैं !
बेहतरीन शब्द सामर्थ्य युक्त इस रचना के लिए आभार !!
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!

Unknown said...

Bahut hi khoob.. accha laga aapke blog par aakar.
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

रश्मि प्रभा... said...

haarna bhi nahi hai

shyam gupta said...

ईश्वर का बसेरा है,
बस वही तो इक तेरा है |

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